Wednesday, July 31, 2013




प्रार्थना का मार्ग समर्पण का मार्ग है

प्रार्थना याचना नहीं अर्पणा है
जिससे हृदय के द्वार स्वयमेव खुलते हैं
सूरज का उदय हो और फूल न खिलें तो समझना कि वह फूल नहीं पत्थर है… परमात्मा की प्रार्थना हो और हमारा हृदय न खिले तो जानना चाहिए वह हृदय नहीं पत्थर है
प्रार्थना में जब मॉंग आती है तो भक्त उपासक न रहकर याचक बन जाता है
प्रार्थना एक निष्काम कर्म है
जब भक्त तन्मय होकर प्रार्थना में लग जाता है तो उसकी सारी इच्छाएं स्वतः समाप्त हो जाती है
एक भक्त की सच्ची प्रार्थना इस प्रकार होनी चाहिए…


करो रक्षा विपत्ति से न ऐसी प्रार्थना मेरी


विपत्ति से भय नहीं खाऊँ प्रभु ये प्रार्थना मेरी॥

मिले दुःख ताप से शान्ति न ऐसी प्रार्थना मेरी


सभी दुःखों पर विजय पाऊँ, प्रभु ये प्रार्थना मेरी॥

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है

लाइफ स्टाइल


- आचार्य कल्याणबोधि सूरीजी